#5
कुछ लम्हे ऐसे बीत गए,
आप हमसे पीछे छूट गए,,
एक धुंदलाता तारा चमक रहा,
फिर से उमीदों को चिढ़ा रहा,,
सपनों मैं पंख लगा रहा,
फिर से आशा जगा रहा.
पर मुक़द्दर को यह अब मंजूर नहीं,
इन लम्हों का कोई अब दस्तूर नहीं,,
होती है नज़रों मैं बातें अब भी,
पर उन खुशियों की अब फरियाद नही.
----Akash